मंगलवार, 31 जनवरी 2012

भारतीय मीडिया की क्या भूमिका है , इस पर भी सवाल उठाना बेहद जरुरी है |

भारतीय मीडिया की क्या भूमिका है , इस पर भी सवाल उठाना बेहद जरुरी है | हमारे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाने वाला यह भारतीय मीडिया क्या सच्च में लोकतंत्र का एक मजबूत स्तम्भ है ?? और क्या हमें इसकी निष्पक्षता पर पूर्ण विश्वास करना चाहिये ?? ये सवाल मेरे नहीं है , ये सवाल है देश की आम जनता के | मैंने जो देखा उससे मुझे लगा की भारतीय मीडिया को रुई का पहाड़ खड़ा करना बहुत अच्छे से आता है , और इनका एक मात्र उद्देश्य अधिक से अधिक विज्ञापन और चैनल की टी . आर . पी को बढाना है | " अन्ना जी " भी एक रुई के पहाड़ का ही उदाहरण है, खैर उनके विषय पर मैं बाद में आउगी | पहले मैं मीडिया को लेकर ही अपनी दो बात ही कह दूँ .....
 
मेरा मानना है , की भारतीय मीडिया वो संस्थान है , जो देश के आम आदमी की भावनाओं को अच्छे से जानता है | और उसे पता है ,की क्या दिखाया जाये और क्या दिखाने से लोग खिचे आयेगे और उनके मन अनुसार ज्यादा उपस्तिथि दर्ज करायेगे | भारतीय मीडिया का क्षेत्र वैसे तो बहुत ही वृहद् है , लेकिन देश का भला या बुरा ना बताकर केवल सूचनाएं देना इनका एक मात्र उद्देश्य है |
मेरा मानना है , की भारतीय मीडिया जन भावना को जगा कर भी अपना ही लक्ष्य साधना चाहती है |
 
अगर मेरी कही बात किसी मीडिया भाईयो को बुरी लगे, तो खेद प्रकट करना चाहती हूँ | मैं आम भारतीय नारी हूँ , और मेरी सिर्फ ये चाहत है की मीडिया अपने कर्तव्य के लिए सजग हो और देश सेवा को अपना एक मात्र लक्ष्य बनाकर | देश को जोड़ने और देश की समस्यों को उजागर करने में अहम् भूमिका निभायें |

बुधवार, 18 जनवरी 2012

दहेज़ एक महादानव है ....


दहेज़ एक महादानव है , जो की हमारे भारतीय समाज को निगल चूका है | और इसे हम जितना भी नकारे ये कालिख की तरह हमारे समाज से चिपका हुआ है | इसके कारण हफ्ते -दर -हफ्ते हो रहे नये दहेज़ उत्पीड़न के मामले आये दिन, टी.वी न्यूज़ में या न्यूज़ पेपरों में आते रहते है | क्या ये हमारे समाज का अंग है ? यदि है , तो ऐसे अंग से अंगभंग होना ही उचित है और भले इससे हमारी शादियाँ भी विदेशियों की तरह निरस क्यों ना हो जाये | अगर हम हमारी भारतीय परम्पराओं को भी त्यागकर , इस दहेज़ नामक महादानव से मुक्ति पायेगे तो हम इसके लिए भी तैयार है | दहेज़ मुक्त समाज एक काल्पनिक समाज सा लगता , क्योकिं शादी में वधु पक्ष द्वारा वर पक्ष को दिया गया उपहार दहेज़ की श्रेणी में है और उपहार देना तो  भारतीयों की परम्परा है | और इसका विरोध ना कर हमे दहेज़ मुक्त समाज बनाने के लिए जनचेतना शुरू करनी होगी |

मैं एक नारी हूँ, इसलिए एक नारी की पीड़ा को भलीभाती समझ सकती हूँ | ' दहेज़ उत्पीड़न ' की घटनाएँ मुझे भी निराशा से भर जाती है | आखिर मैं ये सवाल करती हूँ , की भारतीय समाज में कन्यादान असल में धन देकर अपनी समस्याओं से छुटकारा पाना तो नहीं ?? क्या भारतीय पिता ये सोचता है की अगर धन से दहेज़ मांगने वाले लालचियों का पेट भर देते है , तो वो कभी -भी उनकी बेटियों को प्रताड़ित नहीं करेगे | मुझे तो ऐसा नहीं लगता है , जो लोग इस प्रकार की मानसिकता रखते है वे पैसे की थोड़ी या अधिक पूर्ति से कभी संतुष्ट नहीं होने वाले बल्कि उनकी भूख और भी बड़ जाएगी | वर्तमान में हुई घटनाओं से कुछ ऐसा ही लगता है , जहाँ मोटी धनराशि देने के बाद भी लड़कियों को जला दिया गया |

इसलिए सभी माताओं , पिताओं और भाइयों से मेरा अनुरोध है की इस दानव को अपने घर ना आने दे | और इस सच्चाई को जाने की कोई भी रिश्ता जो दहेज़ की डोर से बंधता है , असल में वो पैसे की डोर होती है | जो जल्द ही टूट जाती है , इसलिए अपनी बहन या पत्नी का जीवन बर्बाद ना करे | अपने घर तथा पड़ोसियों के बीच भी ये बात रखे की दहेज़ ना ले और ना दे ....

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

भारत के गाँव है , ऊर्जा संकट से बचाव


भारत एक कृषि प्रधान देश है | भारत की 80 प्रतिशत जनता गाँव में निवास करती है , पूरा विश्व ऊर्जा के संकट से भयभित है , तो मैं इस बदलते घटनाक्रम में ' भारत की वर्तमान स्थिति पर कुछ कहना चाहती हूँ ' | हमारा भारत जनसंख्या के बोज में दबा जा रहा है | एक आशंका जताई जाती है की अगले 65 वर्षो में भारत देश का समस्त ऊर्जा स्त्रोत समाप्त हो सकता है | एक अनुमान है की सन 2025 तक विश्व की जनसंख्या 8 अरब तक हो जाएगी, जबकि वर्तमान में हमारी जनसंख्या 1.20 अरब हो चुकी है |

आजादी के बाद औद्योगिक विकास ने जो गति पकड़ी है,  जिसके कारण उधोगों के लिए ऊर्जा की खपत में वृद्धि हुई | कुछ उधोग तो ऐसे स्थापित हुए है, जिनमें स्वभावतः ही आधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है | जैसे मशीनरी एवं इंजीनियरिंग उधोग लोहा एवं इस्पात उधोग | यूँ तो भारत ऊर्जा के नये विकल्पों को विकसित नहीं कर पाया है और वर्तमान उपस्थित विकल्प जैसे कोयला और पेट्रोल समाप्त होने की स्तिथि में आ गये है | जल विधुत के लक्ष्य को साधने में और अणुशक्ति के विकास में देश पिछड़ता जा रहा है | जिससें देश में ऊर्जा संकट की स्तिथि निर्मित होती जा रही है |

ऐसे में भारत को ऊर्जा संकट से जो कोई बचा सकता है, वो है भारत के गाँव | भारत की जलवायु उसे सौर ऊर्जा ,पवन ऊर्जा ,जैव ऊर्जा ,लहर ऊर्जा ,भूतापीय ऊर्जा आदि ऊर्जा उत्पन्न करने के प्रयाप्त अवसर देती है | कृषि प्रधान देश होने के कारण भारत में पशुओं की संख्या बहुत आधिक है और हो सकता है की भविष्य में गोबर गैस संयंत्र ही हमारी ऊर्जा की अधिकतरपूर्ति करे |

बुधवार, 11 जनवरी 2012

फेशन से बदलता भारत और भारत के लोग ...


यदि हम खुद को भारत का प्रतिनिधि समझते है ,तो हमें विशाल हृदय एवं  मस्तिष्क रखना चाहिए | साथ ही हमें अपने पहनावे पर भी नियंत्रण रखना चाहिए | क्योंकि ओछे व्यक्ति बड़े -बड़े कार्यो को संपन्न नहीं कर सकते | पहनावे का भी इसमें बड़ा योगदान होता है , क्योंकि पहनावा आपके रहन -सहन और आपकी सोच को प्रदर्शित करता है | दुनिया में सभी लोग खुद को अलग और नयी विशेषताओं के साथ प्रदर्शित करना चाहते है और पहनावा इसमे अहम् भूमिका निभाता है | कोई अपनी हेसियत के अनुसार महंगे कपड़े पहनता है और उसमें भी सोने या हीरे से सजाता है | ये दिखावा होते हुए भी किसी के लिए सुन्दर दिखने की कोशिश है तथा इसमें महिलाएं भी पीछे नहीं है |

ये एक सच है ,की गरीबो को तन ढकने का कपड़ा नहीं मिलता पर ऊँची हेसियत रखने वाली महिलाये कपड़े को कम करके ही पहनती है, उनके कपड़े जितने छोटे होगे वे लोगो का उतना ज्यादा से ज्यादा ध्यान खींच पायेगे | आजकल युवा विदेशी कपड़े पहनकर ऐसा समझते है की हम भी विदेशीयो से कम नहीं और हमने भी उनकी बराबरी कर ली है | और अब हम दुसरे लोगो से कुछ ऊँचे हो गये है तो वे सभी लोग ये सच सुन ले की हम भारतीय है | अगर हम विदेशी कपड़े पहनले खूब सारा पाउडर लगा ले , तो भी हम विदेशियों की तरह गोरी चमड़ी वाले नहीं बन पायेगे |

हम भारतीय है यही हमारी मूल पहचान है | तो बेकार के दिखावे से परहेज करे और वैसे कपड़े पहने जिससे हम भारतीयता छोड़ते हुए ना लगे क्योंकि खुद की पहचान ही सब कुछ होती है | मैं यह कहना चाहती हूँ की जब आप स्वयं को भारतीय मानते है , तो इस बात का दृढता से विश्वास करे की आप विश्व में भारत का प्रतिनिधित्व करते है | तो दुनिया के सभी लोग में आपकी विशिष्ट पहचान आपके भारतीय होने से है , इसलिए गर्व से कहे की हम भारतीय है | और ये हमारी कथनी और करनी में साफ़ नज़र आये |

मंगलवार, 10 जनवरी 2012

धर्म में विश्वास और कर्म दोनों का ही समावेश,तंत्र-मन्त्र नहीं |


धर्म में विश्वास और कर्म दोनों का ही समावेश होता है | सम्पूर्ण मानव समाज में ' धर्म ' ,चाहे वह विदेशी हो या स्वदेशी न्यूनतम रूप में विधमान होता है |  वैज्ञानिक धार्मिक भावनाओं को तर्क के तराजू में तोलकर उसके अस्तित्व को नकारते है |फलस्वरूप वे इसे अन्धविश्वास ही कहते है | लेकिन अभी भी विशेषकर सरल समाज के लोगो का विश्वास है , की प्राकृतिक  क्रियाओं और मानव प्रयतनों की सफलता ऐसी सत्ताओं के नियंत्रण में है | जो दैनिक अनुभूति से परे है और जिनका हस्तछेप घटनाक्रम को बदल सकता है | ऐसी सत्ताओं के लिए ' देवी ' शब्द का प्रयोग किया जाता है |

अब मैं बताना चाहती हूँ की जादू और धर्म में क्या अंतर है , और इसका सबसे बुरा प्रभाव गरीब और अशिक्षित लोगो पर कैसे पड़ता है | ज्यादातर कुछ पाखंडी लोग धर्म और देवी का नाम लेकर, बीमारी ठीक करने तथा मरे व्यक्ति को पुन: जीवित करने की बात करते है | और भोले-भाले लोग इनकी जाल में फसकर और भी ज्यादा बीमार हो जाते है | और  ये सच है कोई भी तांत्रिक अपनी तंत्र-मन्त्र की शक्ति से किसी मृत व्यक्ति को पुन: जीवित नहीं कर सकता क्योंकि जीवन देने का उसे कोई अधिकार नहीं है, जीवन तो प्रकृति की उस अदभुत शक्ति की देन है जो आजीवन उसका पालन पोषण करती है | पर जादू-टोने का प्रयोग पाखंडी लोग अपनी गलत बातो को मनवाने के लिए करते है |

तो इन सभी बुरी चीजों से दूर रहकर , हमे केवल आस्था और विश्वास की शक्ति से जीवन में सुख और शांति को पाना है | आत्मा के सिद्धांत  से हम कह सकते है की मनुष्यों में आत्माएँ होती है , जो मृत्यु के बाद भी शेष रहती है | अत: हमे जादू -टोने , जैसे पाखंडो से दूर रहकर आस्था और सच्चाई को समझना होगा | देवी या देवता पूजन केवल मन की शांति के लिए हो तथा उससे किसी व्यक्ति को कोई भी नुकसान नहीं पहुँचाया जाये |

सोमवार, 9 जनवरी 2012

लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ यानि मीडिया ...


लोकतंत्र का  चौथा स्तम्भ यानि मीडिया, सुनकर ही हमे ऐसा लगता है " एक जिम्मेदारी " | पर क्या हमारा मीडिया उतना ही जिम्मेदार है ?? सच्चाई को सामने लेन में, जितना की हम सुनने को उत्साहित रहते है ?? मुझे तो ऐसा लगता है की मीडिया समाज के प्रति पूरी ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है , पर सवाल ये है की क्या मैं सच बोल रही हूँ ?? आज, जब कभी हम न्यूज़ चैनल देखते है तो हम न्यूज़ से ज्यादा विज्ञापन ही देखते है | और सच ये है की न्यूज़ तो विज्ञापन के कारण ही दिखाया जाता है |

टी . आर .पी की जो मांग है, वो न्यूज़ के भविष्य के लिए बहुत हानिकारक है | क्योंकि टी . आर .पी तो केवल उत्तेजना पैदा करने वाली खबरे ही दिला सकती है | जिससे आम जनता को केवल  हत्या , समाजिक दुष्कर्म या किसी बड़े सेलिब्रेटी की ही खबरे मिलेगी | और जो देश की मुख्य खबरे है, वो टी . आर .पी नहीं दिला पाने के कारण पीछे रह जाती है और जनता खबरों के नाम पर केवल मनोरंजन ही पाती है | हमारा मीडिया पूरी तरह व्यवसाय सा बन गया है , जहाँ ख़बरों का उद्देश्य अधिक से अधिक धनार्जन करना है |

और आजकल मीडिया की कभी कोशिश ही नहीं होती की वो सच्ची और अच्छी जानकारी दे, वो तो केवल समाचार को सनसनी खेज बनाना चाहती है | क्योंकि लोग यही तो सुनना चाहते है , मीडिया की स्पष्ठ्वादिता पर कई सवाल उठते है , जिनमे ये सवाल प्रमुख है की क्या मीडिया बिकाऊ है या मीडिया के लोग बिकाऊ है ??

जो भी हो मीडिया का महत्त्व इसलिए है , क्योंकि मीडिया हमे घटनाओ की सही और सदिर्श्य जानकारी चित्र या लेखन के माध्यम से देती है | लेकिन ये चिंतन का विषय है की कही लोग अब समाचार में जानकारी की जगह सिर्फ मनोरंजन ना खोजे और उन्हें सिर्फ मनोरंजन ही मिले न्यूज़ नहीं ..

रविवार, 8 जनवरी 2012

राजनीती सरल शब्दों में ....


राजनीती सरल शब्दों में मनुष्य जाति द्वारा किया गया, नीतिगत या रणनीति बनाकर किया, तर्कसंगत व्यवहार है | और राजनीती का जन्म भी मनुष्य जाति के जन्म के साथ ही हुआ था | इसलिए राजनीती इतना वृहद् विषय है की उसके अध्यनकर्ताओ ने इसे विज्ञान ही माना और राजनीतिक घटनाओ को काल अनुसार श्रेणीगत कर एक विषय बनाया जिसे राजनीती विज्ञान कहते है | और इसकी सहायता से राजनीतीकार भूतकाल में घटित घटनाओ का अध्ययनकर, किसी पूर्व घटने वाली राजनीतिक घटना की भविष्यवाणी कर देते है | पर क्या हमारे राजनेताओ में से, सभी ने क्या राजनीती विज्ञान नामक विषय का अध्ययन किया होगा ?? तो जवाब साफ़ है कुछ ही लोगो ने क्या होगा | लेकिन किताबी बात अलग होती है , और जमीनी राजनीती को लोग कीचड़ ही कहते है |

लेकिन फिर भी मैं किसी रुढ़िवादी परम्परा की तरह पढ़ाई से व्यक्ति की योग्यता को नहीं आकति  हूँ | मैं तो ये मानती हूँ , की ,मानव धर्म सबसे बड़ा और ऊँचा होता है और जो मानव धर्म को समझता है वो सदैव सभी जनों  के हित का कार्य करता है | पर ये स्वार्थी नेता लोग, जाति धर्म के नाम पर , लोगो को बाँटकर सिर्फ वोट पाते है और राज करते हुए , जनता के नोट खाते है |

इसलिए राजनीती से मुझे एक भय सा लगता है , की कही मैं किसी पर कुछ कह दूँ तो मुझे कोई ये ना कह दे की मैं किसी पार्टी की समर्थक हूँ या मैंने ये सब अपने निजी लाभ के लिए लिखा है | तो मैं बस इतना कहना चाहती हूँ की देश विकास करे और हमारे नेताओ को सदबुध्दी मिले | और वे पैसे की राजनीती छोड़ देश हित में कार्य करे ....